बहुत दिनों बाद आया हूँ। लिखने को कुछ खास है नहीं पर फिर क्या, बहुत सारे मित्र ऐसे जिनके पास लिखने को कुछ नहीं होता पर फिर भी लिखते हैं ।
दरअसल ब्लॉग ने उन सब लोगों के लिए वरदान है जो 'छपास' रोग से पीडि़त हैं। कुछ भी लिखो, कैसा भी लिखो। बटन दबाओ और छाप दो। कोई संपादन नहीं को काटछांट नहीं यहॉं तक की कई बार तो कोई कारण भी नहीं लिखने का पर लिखना जरूरी है, कोई उसे पढ़े या नहीं।।
मैं चिट्ठों को फीड रीडर से पढ़ता हूँ। सारे एग्रीगेटर्स की फीड अपडेट होती रहती है हर आधे घण्टे में। तकरीबन हर 30 मिनट में 30 से 35 नई पोस्ट आ जाती हैं। मतलब मिनट में एक। पर कितनी हैं जो आपको कुछ नया बता रही हैं। कोई नया विचार दे रही हैं। शायद दस में एक। और जैसे जैसे चिट्ठाकारों की संख्या बढ़ रही है ये अनुपात भी तेजी से बढ़ रहा है। मुठ्ठी भर ऐसे चिट्ठे हैं जिन पर पोस्ट का इंतज़ार रहता है।
लोकतंत्र है, और सबको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और ब्लॉग से बेहतर माध्यम और क्या हो सकता है। फिर मैं कौन होता हूँ बिना बात पंचायत करने वाला।
लगे रहो मित्रों, अब छींका टूट ही गया है तो मौका मत छोड़ो। डटे रहो।
चिट्ठे जिंदाबाद !
चिट्ठाकारों की जय हो !!
शनिवार, जनवरी 05, 2008
बिल्ली के भाग से छींका टूटा
:: Unknown :: 3:57 pm
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3 टिप्पणियॉं:
जै हो भाई साब।
बहुत सुंदर विचार हैं आपके । जय चिट्ठे, जय चिट्ठाकारी
आप चिटठा खोलने का पूरा तरीका भी लिख मारें बहुतों पर उपकार होगा। जियो।
भाई की जय !
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