केजरीवाल जी के इस्तीफे से उन सम्भावनाओं को झटका लगा और लगेगा जो देश के अन्य हिस्सों में उनसे प्रेरित होकर जन्म लेने वाली थी या जन्म ले चुकी थी।
अच्छे संकल्प की ऐसी परिणीति, जबकि जनता आपके साथ थी, बुरा लगा।
उनका मकसद अच्छा है मैं भी उनके साथ हूँ, जरूरी नहीं की पार्टी में शामिल होकर ही साथ दिया जाए।
पानी में उतरे बगैर तैरना नहीं आता। आपकी सरकार में प्रशासनिक अनुभव की कमी है ऐसा बहुत दलों ने कहा। उनको तो कुछ न कुछ कहना ही था वो अपना काम कर रहे थे, पर जनता तो आपके साथ थी।
चुनाव से पहले कहा था कि कुछ वादे शॉर्ट टर्म के हैं कुछ लॉंग टर्म में पूरे होने वाले। लॉंग टर्म के वादों को शॉर्ट टर्म में पूरा करने की कोशिश क्यूँ। वातावरण और परिस्थितियोँ को देखते हुए शार्ट टर्म वायदों को लॉंग टर्म में बदला जा सकता था, जनलोकपाल भी शायद उनमें से ही एक था।
ऐसी क्या जल्दी थी। पॉंच साल का एजेंडा था। आराम से जनता को साथ में लेकर दलों और विधायकों पर दबाव बनाया जा सकता था लोकपाल के लिये आने वाले वक़्त में स्थितियोँ को अपने अनुकूल करने की सम्भावनाएँ बनाई जा सकती थी।
जनलोकपाल के नाम इस्तीफा देने से आप एक तरह से अपने बाकी सारे वादों से भी मुँह मोड़ते दिखने लगे। क्या ही अच्छा होता कि बाकी वादे पूरे करते, करने की कोशिश करते जितना भी इन परिस्थितियोँ मेँ हो पाता, लोगों को आपकी ईमानदारी से की हुई मेहनत तो नज़र आती। कमसे कम यह तो न कोई कहता कि वादें पूरे नहीं कर सकते तो जनलोकपाल की आड़ में भाग रहे हैं।
माननीय हो चुके भ्रष्टों की कहानी सबूतों सहित लोगों के सामने रखते सबकी पोल खोलते भ्रष्टों पर मुकदमें करते जेल में डालते। यह सब अपनी सरकार में रहते हुए करते, किसी ने नहीं रोका था। लोगों में भी जागृति होती, विश्वास पैदा होता।
सिर्फ जनलोकपाल विधेयक के कानून बन जाने से क्या दिल्ली भ्रष्टाचार मुक्त हो जाएगी। मेरे को तो ऐसा नहीं लगता। जबतक अच्छी शिक्षा और मूलभूत सुविधाएँ नहीं मिलती तबतक सारे आदर्श खोखले ही नज़र आते हैं चाहे जिस भी चश्में से देखें।
आज के परिदृश्य में बात करेंगे तो शायद बिजली, पानी, सस्ती किन्तु अच्छी चिकित्सा एवं शिक्षा जैसी मूल जरूरतें बहुसंख्य लोगों की प्राथमिकता सूची में जनलोकपाल से उपर होंगी। पर अब अधूरें वादों का क्या, वो विश्वास जो लोगों ने आप पर किया उसका क्या।
कह सकते हैं कि अपने सिद्धांतो के लिए कुर्सी त्याग दी। पर कुर्सी त्यागने से जनता को आपने उस सब लाभ से विमुख कर दिया जो उसकों आपके मुख्यमंत्री रहते मिलता, चाहे भ्रष्टों को न चाहते हुए ईमानदारी बरतनी पड़ती पर कुछ तो भला होता। इस्तीफे के साथ ही एक बड़े तबके को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आपको वोट देकर उन्होंने सही किया था या नहीं।
ऐसा लगने लगा कि आपने आपको वोट देने वालों को बीच मझधार में छोड़ दिया। क्या भरोसा कि भविष्य में आप फिर ऐसा नहीं करेंगे। फिर क्यूँ कर आपको अगले चुनावों में वोट दें। राजनीति में सैकण्ड चांस मिल ही जाए ऐसा जरुरी नहीं, फिर जब पहले चांस में ही उम्मीदें टूट जाऍं तो दूसरी बारी मिलने के लिए समर्थन से ज्यादा शायद किस्मत चाहिए।
भगवान करे आपकी किस्मत में ऐसा हो।
4 टिप्पणियॉं:
आपकी इस ईमानदार पहल की हा प्रशंसा करते हैं।
पांच साल थे कहाँ ?
कौन दे रहा था उन्हें ?
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