मंगलवार, अक्तूबर 23, 2007

पुरानी रामलीला, अंदाज़ नया


राम लीला के दिन हैं। हमारे मोहल्‍ले में भी रामलीला होनी तय हुई। आसार कुछ ऐसे बने कि लगा शायद राम के जन्‍म लेने से पहले ही रामलीला कमेटी और मोहल्‍ला समिति में महाभारत हो जाएगी।

मुद्दा था मोहल्‍ले के बीचोंबीच ताजा-ताजा बने पार्क में रामलीला करवाने को लेकर। मोहल्‍ले वाले बोल रहे थे कि बड़ी मुश्किल से तो सरकार को पार्क बनाने की ध्‍यान आया था हफ्ता-पंद्रह दिन मेहनत करके मजदूरों ने बंजर मैदान को पार्क की शक्‍ल दी थी और अब बस्‍ती बसी नहीं और लूटने पहले आ गए।

दूसरी ओर भी राम जी के भक्‍त थे। ये उनकी आस्‍था का मामला था फिर चाहे किसी को कितनी भी परेशानी हो। आस्‍था के मामले में तो कोई समझौता नहीं हो सकता, एक यही तो बहाना है जिसे आगे रखकर रामभक्‍त चाहे कितनी गुण्‍डागर्दी करें, चाहे कितनी ही अव्‍यवस्‍था फैलाऍं कोई रोक-टोक नहीं।

खैर, रामभक्‍तों ने तम्‍बू तान दिया। हम मोहल्‍ले वाले रामलीला देखने को मजबूर थे। राम-राम करके रामलीला शुरु हुई। मेरे कमरे के छज्‍जे में और कैकेयी कोप भवन में केवल एक सड़क का फासला था। मैं रामलीला देखता तो नहीं था पर उसे सुनने के लिए मजबूर था। राम जी बोल रहे थे कि 'आपके वचन का मैं अपने प्राण देकर भी पालन करुंगा माते, भरत को राज्‍य मिले इससे ज्‍यादा खुशी की बात मेरे लिए और क्‍या हो सकती है।' सब ठीकठाक था पर जब मैंने राम जी को लगातार तीसरे दिन भी यही संवाद बोलते सुना तो लगा शायद कलियुग के राम ने राज्‍य छोड़ने का विचार त्‍याग दिया है और आज के नेताओं से प्रभावित होकर कैकेयी को केवल आश्‍वासन देकर बहला रहे हैं। असलियत क्‍या थी ये तो वो ही जाने, बहरहाल ।

इस रामलीला में एक और चीज़ ध्‍यान देने वाली थी की इसमें कभी भी अचानक सुदामा की एंट्री हो जाती थी। अचानक से गाना बजने लगता था 'अरे द्वारपालों कन्‍हैया को कह दो, दर पे तुम्‍हारे गरीब आ गया है'। अब राम जी के महल में कन्‍हैया कहॉं से आया ये एक विचारणीय प्रश्‍न है।

राम-राम करते दशमी का दिन भी आया। रावण, मेघनाद और कुम्‍भकर्ण के साथ फुंकने के लिए खड़ा था, मोहल्‍ले की गलियों को फेरीवालों ने सुपर बाज़ार बना दिया था। तिल धरने की जगह नहीं थी। मोहल्‍ले वालों परेशानी तो थी पर यह सोचकर सुकून था कि चलो आज फुंकेगा तो चैन मिलेगा।

राम लक्ष्‍मण तैयार थे। धनुष हाथ में, तीर कमान पर चढ़ाए रावण,मेघनाद और कुम्‍भकर्ण को मारने को तैयार। पार्क की अबतक टूट चुकी चारदीवारी पर सैकड़ों लोग जय श्री राम करके राम जी का जोश बढ़ा रहे थे। मंच से उद्घोषक घोषणा कर रहा था। बस रावण्‍ा के पापों का अंत हो गया है। अब श्रीराम रावण का वध करेंगे और फिर पटाखों से भरा पुतला फूंकेंगे। बच्‍चों का खुशी का ठिकाना नहीं था, वो रावण के जलने और पटाखों के फुटने का इंतज़ार कर रहे थे।

राम जी रावण के पीछे दौड़े, रावण आगे राम जी पीछे। पूरे मैदान में भागमभाग चल रही थी। इंतज़ार था की मंच से घोषणा हो और राम जी रावण का वध करें। रावण भी इसी इंतज़ार में था कि कब राम जी उसे मारें।
इसी बीच पता नहीं कहॉं से एक स्‍वयंभू हनुमान प्रकट हुए और सबकी नज़रे बचाते हुए इन भाईसाहब ने मेघनाद के पुतले के नीचे पड़ी फूस को तिल्‍ली दिखा दी। फिर क्‍या था पटाखों की धूम-धाम शुरु हो गई। बच्‍चों ने तालियॉं बजा दी।

मंच से उद्घोषणा बंद हो गई। राम जी भौचंक, लक्ष्‍मण कभी अपने हाथ में धनुष चढ़े तीर को देखे कभी मेघनाद को । वो तो रुआंसा हो गया, शायद उसका पहला मौका था मेघनाद को मारने का और वो भी किसी और ने छीन लिया था।

ऐसे में रावण ने समझदारी दिखाते हुए राम जी को पकड़ा, हनुमान व लक्ष्‍मण को इशारा किया और ले गया अपने ही पुतले के पास। वो राम जी को बार-बार बोले कि मेरे का मारो, राम जी तो बिल्‍कुल सन्‍नाटे में थे। खैर रावण खुद ही हे शिव शम्‍भो कहता हुआ गत् प्राण हुआ और किसी ने राम जी का हाथ पकड़ कर कुम्‍भकर्ण और रावण के पुतलों को आग लगाई।

अब तक राम जी को हनुमान ने संजीवनी सुंघा दी थी और उनकी कुछ चेतना लौटी। चेतना लौटते ही उन्‍होंने दो-चार हवाई फायर किए अपने धनुष से।

अब स्थितियों को सम्‍भालते हुए हनुमान, लक्ष्‍मण और अन्‍य कमेटी वालों ने जयकारा लगाया बोलो श्री रामचन्‍द्र भगवान् की जय

हमने भी जय श्री राम का जय घोष किया और अपने मोहल्‍ले से राम जी को इस साल विदा किया।