शनिवार, मार्च 17, 2007


इंशा साहब की एक नज्‍़म

(१)
यह बच्चा किसका बच्चा है ?
यह बच्चा काला काला सा
यह काल सा मटियाला सा
यह बच्चा भूखा भूखा सा
यह बच्चा सूखा सूखा सा
यह बच्चा किसका बच्चा है ?
जो रेत पे तन्हा बैठा है
ना इसके पेट मे रोटी है
ना इसके तन पर कपड़ा है
ना इसके सर पर टोपी है
ना इसके पैर में जूता है
ना इसके पास खिलौनों में
कोई भालू है कोई घोड़ा है
ना इसका जी बहलाने को
कोई लोरी है, कोई झूला है
ना इसकी जेब में धेला है
ना इसके हाथ में पैसा है
ना इसके अम्मी अब्बू हैं
ना इसके आपा खाला हैं
यहा सारे जग में तन्है है
यह बच्चा कैसा बच्चा है
(२)
यह सहरा कैसा सहरा है
ना इस सहरा में बादल हैं
ना इस सहरा में बरखा है
ना इस सहरा में बाली है
ना इस सहरा में खो़शा है
ना इस सहरा में सब्ज़ा है
ना इस सहरा में साया है
यह सहरा भूख का सहरा है
यह सहरा मौत का सहरा है
(३)
यह बच्चा कैसे बैठा है
यह बच्चा कब से बैठा है
यह बच्चा क्या कुछ पूछता है
यह बच्चा क्या कुछ कहता है
यह दुनिया कैसी दुनिया है
यह दुनिया किसकी दुनिया है
(४)

इस दुनिया के कुछ टुकड़ों में
कहीं फूल खिले कहीं सब्ज़ा है
कहीं बादल घिर-घर आते हैं
कहीं चश्मा है कहीं दरिया है
कहीं ऊंचे महल अटरिया हैं
कहीं महफिल है, कहीं मेला है
कहीं कपड़ों के बाजार सजे
यह रेशम है ,यह दीबा है
कहीं गल्ले के बाजार सजे
सब गेहूं धान मुहय्या है
कहीं दौलत के संदूक भरे
हां, तांबा, सोना रूपा है
तुम जो मांगो सो हाजिर है
तुम जो चाहो सो मिलता है
इस भूख के दुख की दुनिया में
यह कैसा सुख का सहरा है?
वो किस धरती के टुकड़े हैं
यह किस दुनिया का हिस्सा है?
(५)
हम जिस आदम के बेटे हैं
यह उस आदम का बेटा है
यह आदम एक ही आदम है
वह गोरा है या काला है
यह धरती एक ही धरती है
यह दुनिया एक ही दुनिया है
सब इक दाता के बंदे हैं
सब बंदों का इक दाता है
कुछ पूरब-पच्छिम फर्क नहीं
इस धरती पर हक सबका है
(६)
यह तन्हा बच्चा बेचारा
यह बच्चा जो यहां बैठा है
इस बच्चे की कहीं भूख मिटे
(क्या मुश्किल है हो सकता है)
इस बच्चे को कहीं दूध मिले
(हां,दूध यहां बहुतेरा है )
इस बच्चे का कोई तन ढांके
(क्या कपड़ों का यहां तोड़ा है)
इस बच्चे को कोई गोद में ले
(इन्सान जो अब तक जिंदा है)
फिर देखिये कैसा बच्चा है
यह कितना प्यारा बच्चा है !

(७)
इस जग में सबकुछ रब का है
जो रब का है वो सबका है
सब अपने हैं कोई गैर नहीं
हर चीज़ में सबका साझा है
जो बढ़ता है, जो उगता है
वह दाना है या मेवा है
जो कपड़ा है या कंबल है
जो चांदी है, या सोना है
वह सारा है इस बच्चे का
जो तेरा है, जो मेरा है
यह बच्चा किसका बच्चा है ?
यह बच्चा सबका बच्चा है

गुरुवार, मार्च 08, 2007

शांति स्‍थापना के लिए कत्‍ल -- शांति प्रयास का अमेरिकी फॉर्मुला

दुनिया में शांति बनाए रखने और आतंकवाद का खात्‍मा करने के लिए आज सुबह एक तानाशाह ने दूसरे तानाशाह को फाँसी पर लटका दिया।

खुद के रोपे हुए बीज को पहले पेड़ बनने में पूरी मदद की, इरान को खत्‍म करने के लिए इराक में सद्दाम को बढ़ावा दिया, जब-जब जरुरत पड़ी तो सैन्‍य और आर्थिक सहायता की और जब सद्दाम ने आंखें दिखाईं तो उसे दुनिया का नं 1 दुश्‍मन घोषित कर दिया।

तेल की इस राजनीति में अपना सिक्‍का जमाए रखने के लिए 'शांति के पैरोकार' बुश साहब ने इस दुनिया को अमनचैन का वास्‍ता देकर पहले अफगानिस्‍तान और फिर इराक पर हमला किया। लाखों बेगुनाहों को बेवक्‍त मौत की नींद सुला दिया। और फिर सद्दाम को दुजैल में हुए 148 मौतों का दोषी करार देते हुए सूली चढ़ा दिया। जिस नरसंहार के मुकदमे में यह सजा दी गई वो घटना 1982 की है।

मजे़दार बात यह की 1982 में तो अमेरिका को इस घटना से कोई खास फर्क नहीं पड़ा, पड़ता भी कैसे उस वक्‍त तो सद्दाम अमेरिका का लंगोटिया था और फिर उसने सौ-दो सौ मार भी दिए तो क्‍या। इरान के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले सद्दाम तो उस वक्‍त अमेरिका के प्रिय मित्रों में से एक था। ठीक उसी तरह जैसे सोवियत संघ के खिलाफ पहले शांतिदूत अमेरिका ने तालिबान को बनाया उसे हर तरह से मदद की और जब अपना काम निकल गया तो तालिबान को इंसानियत का दुश्‍मन बता दिया। जबतक तालिबान या सद्दाम अमेरिकी हितों को नुक्‍सान नहीं पहुँचा रहा था तबतक सब कुछ ठीक था। फिर वो चाहे किसी दूसरे मुल्‍क में आतंकवाद फैलाए या गैर अमेरिकियों को जब चाहे मारे। उस समय तक ना तो ये दोनों खतरनाक थे और ना ही दहशतगर्द। 11 सितंबर के बाद रातों-रात ये दोनों अमेरिका की नज़र में आतंकवादी हो गए। इन दोनों के घोषित आतंकवादी होते ही अमेरिका ने दुनिया को इनसे बचाने का बीड़ा उठाया। और फिर विश्‍व शांतिदूत जॉर्ज बुश ने विश्‍व में अहिंसा का पालन करवाने के लिए तुरंत अपनी सेनाओं को कूच का आदेश दिया।

बुश साहब ने दुनिया को शांति का अमेरिकी फॉर्मुला दिया। जिसके तहत बुश साहब ने अफगा‍निस्‍तान में लाखों बेगुनाहों को कत्‍़ल किया। उसके बाद इराक में बेहिसाब बेकसूर जानें लीं और आज तक ले रहे हैं।

दुनिया के लाट साहब द्वारा किया गया ये नरसंहार शायद अमेरिकी शब्‍दकोष में नरसंहार के परिभाषा में न आता हो। तेल के इस खेल में बुश ने दुनिया को यह समझा दिया कि 'जिसकी लाठी उसकी भैंस'।