गुरुवार, मार्च 08, 2007

शांति स्‍थापना के लिए कत्‍ल -- शांति प्रयास का अमेरिकी फॉर्मुला

दुनिया में शांति बनाए रखने और आतंकवाद का खात्‍मा करने के लिए आज सुबह एक तानाशाह ने दूसरे तानाशाह को फाँसी पर लटका दिया।

खुद के रोपे हुए बीज को पहले पेड़ बनने में पूरी मदद की, इरान को खत्‍म करने के लिए इराक में सद्दाम को बढ़ावा दिया, जब-जब जरुरत पड़ी तो सैन्‍य और आर्थिक सहायता की और जब सद्दाम ने आंखें दिखाईं तो उसे दुनिया का नं 1 दुश्‍मन घोषित कर दिया।

तेल की इस राजनीति में अपना सिक्‍का जमाए रखने के लिए 'शांति के पैरोकार' बुश साहब ने इस दुनिया को अमनचैन का वास्‍ता देकर पहले अफगानिस्‍तान और फिर इराक पर हमला किया। लाखों बेगुनाहों को बेवक्‍त मौत की नींद सुला दिया। और फिर सद्दाम को दुजैल में हुए 148 मौतों का दोषी करार देते हुए सूली चढ़ा दिया। जिस नरसंहार के मुकदमे में यह सजा दी गई वो घटना 1982 की है।

मजे़दार बात यह की 1982 में तो अमेरिका को इस घटना से कोई खास फर्क नहीं पड़ा, पड़ता भी कैसे उस वक्‍त तो सद्दाम अमेरिका का लंगोटिया था और फिर उसने सौ-दो सौ मार भी दिए तो क्‍या। इरान के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले सद्दाम तो उस वक्‍त अमेरिका के प्रिय मित्रों में से एक था। ठीक उसी तरह जैसे सोवियत संघ के खिलाफ पहले शांतिदूत अमेरिका ने तालिबान को बनाया उसे हर तरह से मदद की और जब अपना काम निकल गया तो तालिबान को इंसानियत का दुश्‍मन बता दिया। जबतक तालिबान या सद्दाम अमेरिकी हितों को नुक्‍सान नहीं पहुँचा रहा था तबतक सब कुछ ठीक था। फिर वो चाहे किसी दूसरे मुल्‍क में आतंकवाद फैलाए या गैर अमेरिकियों को जब चाहे मारे। उस समय तक ना तो ये दोनों खतरनाक थे और ना ही दहशतगर्द। 11 सितंबर के बाद रातों-रात ये दोनों अमेरिका की नज़र में आतंकवादी हो गए। इन दोनों के घोषित आतंकवादी होते ही अमेरिका ने दुनिया को इनसे बचाने का बीड़ा उठाया। और फिर विश्‍व शांतिदूत जॉर्ज बुश ने विश्‍व में अहिंसा का पालन करवाने के लिए तुरंत अपनी सेनाओं को कूच का आदेश दिया।

बुश साहब ने दुनिया को शांति का अमेरिकी फॉर्मुला दिया। जिसके तहत बुश साहब ने अफगा‍निस्‍तान में लाखों बेगुनाहों को कत्‍़ल किया। उसके बाद इराक में बेहिसाब बेकसूर जानें लीं और आज तक ले रहे हैं।

दुनिया के लाट साहब द्वारा किया गया ये नरसंहार शायद अमेरिकी शब्‍दकोष में नरसंहार के परिभाषा में न आता हो। तेल के इस खेल में बुश ने दुनिया को यह समझा दिया कि 'जिसकी लाठी उसकी भैंस'।

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